Jyotish Shastra : નિયમિત રીતે રવિવારે કરો આ કામ, ઈચ્છાપૂર્તિ સાથે ધન-દોલતમાં પણ થશે વધારો….
Jyotish Shastra : રવિવારનો દિવસ સૂર્યદેવને સમર્પિત હોય છે. આ દિવસે સૂર્યદેવની પૂજા કરવાથી વ્યક્તિને જીવનમાં માન-સન્માન અને ધનની પ્રાપ્તિ થાય છે. જીવનના દરેક કાર્યમાં સફળતા પ્રાપ્ત થાય છે.સૂર્યદેવ શક્તિ અને ઉર્જાના દેવતા છે.સૂર્યદેવની નિયમિત પૂજાને મળે છે અનેક લાભ રવિવારે સૂર્ય ચાલીસાના પાઠનો જાપ કરવો જોઈએ
સૂર્ય ઉપાસનાનું વિશેષ મહત્વ
Jyotish Shastra : હિંદુ ધર્મમાં સૂર્ય ઉપાસનાનું વિશેષ મહત્વ દર્શાવવામાં આવ્યું છે. સૂર્યદેવની નિયમિત પૂજા કરવાથી વ્યક્તિને સમાજમાં માન-સન્માન મળે છે. સાથે જ કરિયરમાં પણ સફળતા મળે છે. કળયુગમાં સૂર્યદેવ જ એક માત્ર એવા દેવતા છે જે વ્યક્તિને સાચા દર્શન આપે છે. સાથે જ Jyotish Shastra અનુસાર સૂર્યને તેજ, આત્મવિશ્વાસ, સ્વાસ્થ્ય, સન્માન વગેરેનું પરિબળ માનવામાં આવે છે. આવી સ્થિતિમાં, સૂર્ય દેવની નિયમિત પૂજા કરવાથી, વ્યક્તિને આ બધી વસ્તુઓ મળે છે. રવિવારે સૂર્ય ચાલીસાના પાઠનો જાપ વિશેષ લાભકારી હોય છે. ભણવું.
શ્રી સૂર્યા ચાલીસા:-
दोहा
कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।
अंबरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।
सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।
अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।
मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।
उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।
मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,
सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,
आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।
नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।
सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।
बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।
उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।
अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।
भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।
ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।
पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।
युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।
बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।
जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।
विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।
सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।
‘अस’ जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।
अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।
मंद सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।
परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।
भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।
यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।
दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख संपत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।
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